Friday, August 6, 2010

यह कैसी सर्व शिक्षा

भारत एक ऐसा देश है जहाँ केवल हिन्दुओं से सेकुलर बनने क़ी अपेक्षा क़ी जाती है, बाक़ी लोगों पर सेकुलरवाद लागू नहीं हैं. जब १९५६ में हिन्दू कोड बिल बनाया गया तब भारतीय कोड बिल बनाने की आवश्यकता नहीं समझी गयी. हिन्दू मैरेज एक्ट बनाते समय भी भारतीय मैरेज एक्ट पर ध्यान नहीं गया. शाह बानो प्रकरण में भी तमाम हो हल्ला करने के बाद सेकुलरवाद हार गया . सेकुलर फंड से धार्मिक यात्रायें करना भी एक सीमा तक लंभव कहा जा सकता है. परन्तु अब तो इन्तहा गो गयी जब 'सर्व शिक्षा' के नाम पर सरकारी खर्चे से एक अलग शिक्षा बोर्ड बनाया जा रहा है. यह कैसी सर्व शिक्षा जहाँ सर्वमान्य शिक्षा स्वीकार नहीं. मजहबी संख्या के आधार पर नौकरियां मांगी जा रही हैं और सरकार देने को तैयार भी है. आखिर यही सब तो कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने १९३७ के लखनऊ अधिवेशन में माँगा था. तब क्या तकलीफ थी. यही न कि तब वल्लभ भाई पटेल जीवित थे. उन्होंने बटवारा तो मजबूरी में माना लेकिन अपने जीवन में बटवारे की मानसिकता के आगे झुके नहीं. यदि यह सब उस समय मान लिया गया होता तो शायद देश नहीं बँटता परन्तु देश में दूसरे प्रकार का शासन होता. आखिर हमारे राजनेता चाहते क्या हैं ?

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